गरम जामुन बहुत समय पहले की बात है, सुंदरवन में श्वेतू नामक एक बूढ़ा खरगोश रहता था। वह इतनी अच्छी कविता लिखता था कि सारे जंगल के पशु्पक्षी उन्हें सुनकर दातों तले उँगली दबा लेते और विद्वान तोता तक उनका लोहा मानता था। श्वेतू खरगोश ने शास्त्रार्थ में सुरीली कोयल और विद्वान मैना तक को हरा कर विजय प्राप्त की थी। इसी कारण जंगल का राजा शेर भी उसका आदर करता था। पूरे दरबार में उस जैसा विद्वान कोई दूसरा न था। धीरे-धीरे उसे अपनी विद्वत्ता का बड़ा घमण्ड हो गया। एक दिन वह बड़े सवेरे खाने की तलाश में निकला। बरसात के दिन थे, काले बादलों ने घिरना शुरू ही किया था। मौसम की पहली बरसात होने ही वाली थी। सड़क के किनारे जामुनों के पेड़ काले-काले जामुनों से भरे झुके हुए थे। बड़े-बड़े, काले, रसीले जामुनों को देखकर श्वेतू के मुँह में पानी भर आया। एक बड़े से जामुन के पेड़ के नीचे जाकर उसने आँखें उठाई और ऊपर देखा तो नन्हें तोतों का एक झुण्ड जामुन खाता दिखाई दिया। बूढ़े खरगोश ने नीचे से आवाज़ दी, "प्यारे नातियों मेरे लिये भी थोड़े
Posts
Showing posts from May, 2019
- Get link
- X
- Other Apps
कौन जोड़ेगा चित्र स ब लोग दीपावली की तैयारियों में व्यस्त थे। माँ मिठाइयाँ बना रही थीं। बाबा पड़ोस के बड़े भैया के सात बाहर के दरवाजे पर तोरण बाँध रहे थे। घर चमचमा रहा था। दरवाजों पर नए पर्दे लगे थे। बरामदे में सुंदर सी रंगोली बनाकर उसमें दीये लगा दिये गए थे। माँ ने पिछले हफ़्ते एक नया चित्र बनाया था उसको लकड़ी के चित्र फलक पर लगाया गया था। दरवाजे से अंदर आते चित्र दिखाई देता था। चित्र में तीन दीये थे और शुभ दीपावली लिखा हुआ था। सामने वाले पेड़ पर नन्हे नन्हे बल्बों वाली रोशनी कल ही लग गई थी। छत की मुँडेर पर भी दीये लगा दिये गए थे। बस उनको जलाना भर बाकी था। आज शाम को पूजा के बाद बहुत से लोग आने वाले थे। एक बड़ी दावत का इंतजाम जो था। माँ ने रसोई का काम पूरा कर के नन्हे को आवाज जी , नन्हे जल्दी आओ पहले तु
- Get link
- X
- Other Apps
और चाँद फूट गया आशीष और रोहित के घर आपस में मिले हुए थे। रविवार के दिन वे दोनों बड़े सवेरे उठते ही बगीचे में आ पहुँचे। " तो आज कौन सा खेल खेलें ?" रोहित ने पूछा। वह छह वर्ष का था और पहली कक्षा में पढ़ता था। "कैरम से तो मेरा मन भर गया। क्यों न हम क्रिकेट खेलें ?" आशीष ने कहा। वह भी रोहित के साथ पढ़ता था। "मगर उसके लिये तो ढेर सारे साथियों की ज़रूरत होगी और यहाँ हमारे तुम्हारे सिवा कोई है ही नहीं।" रोहित बोला। वे कुछ देर तक सोचते रहे फिर आशीष ने कहा, "चलो गप्पें खेलते हैं।" "गप्पें? भ़ला यह कैसा खेल होता है?" रोहित को कुछ भी समझ में न आया। "देखो मैं बताता हूँ आ़शीष ने कहा, "हम एक से बढ़ कर एक मज़ेदार गप्प हाँकेंगे। ऐसी गप्पें जो कहीं से भी सच न हों। बड़ा मज़ा आता है इस खेल में। चलो मैं ही शुरू करता हूँ यह जो सामने अशोक का पेड़ है ना रात में बगीचे के तालाब की मछलियाँ इस पर लटक कर झूला झूल रही थीं। रंग बिरंगी मछलियों से यह पेड़ ऐसा जगमगा रहा था मानो लाल परी का राजमहल।" अच्छ